"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-51 (विषय: मुसाफिर) - Open Books Online2024-03-29T14:28:53Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/51-4?commentId=5170231%3AComment%3A986749&feed=yes&xn_auth=noआदाब। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9867932019-06-30T19:49:04.380ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना और सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया रचना भाटिया जी। कड़वी सच्चाई प्रतीकों के माध्यम से बाख़ूबी उभारी गई है। </p>
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<p>ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी 51 के सभी सुधी सहभागियों और टिप्पणीकारों को हार्दिक बधाई और उनके प्रति आभार इसे सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने हेतु। शुभ रात्रि।</p>
<p>आदाब। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना और सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया रचना भाटिया जी। कड़वी सच्चाई प्रतीकों के माध्यम से बाख़ूबी उभारी गई है। </p>
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<p>ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी 51 के सभी सुधी सहभागियों और टिप्पणीकारों को हार्दिक बधाई और उनके प्रति आभार इसे सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने हेतु। शुभ रात्रि।</p> आदरणिय समर कबीर जनाब एवं सभी…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9867922019-06-30T19:19:06.585ZRachna Bhatiahttp://www.openbooksonline.com/profile/RachnaBhatia
आदरणिय समर कबीर जनाब एवं सभी माननीय सदस्य<br />
गोष्ठी में देरी से भाग लेने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
आदरणिय समर कबीर जनाब एवं सभी माननीय सदस्य<br />
गोष्ठी में देरी से भाग लेने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। आदरणिय,मुसाफिर शब्द को बडे अल…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9870242019-06-30T19:12:09.492ZRachna Bhatiahttp://www.openbooksonline.com/profile/RachnaBhatia
आदरणिय,मुसाफिर शब्द को बडे अलग तरीके से उकेरा।<br />
हार्दिक बधाई।
आदरणिय,मुसाफिर शब्द को बडे अलग तरीके से उकेरा।<br />
हार्दिक बधाई। मुसाफिर
शिवानी की जबसे सगाई…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9870212019-06-30T19:04:41.574ZRachna Bhatiahttp://www.openbooksonline.com/profile/RachnaBhatia
मुसाफिर<br />
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शिवानी की जबसे सगाई हुई थी उसे एक सपना अक्सर आने लगा था।यहाँ तक कि वो सोते में हड़बड़ा कर उठ जाया करती थी।माँ के समझाने के बाद भी डर कम नहीं हो रहा था।आज भी ऐसा ही हुआ जैसे ही शिवानी उठी पास में सोई माँ और दादी भी जग गईं।<br />
"सो जा,सब डर चिंता दिमाग से निकाल दे,सब अच्छा ही होगा।"कह कर माँ शिवानी के बाल सहलाने लगी।<br />
क्या हुआ बिट्टो,कोई बुरा सपना देखा क्या?<br />
"हाँ,माँ जी,जब से सगाई हुई तब से दो तीन बार देख चुकी"।माँ ने जवाब दिया।<br />
"बहू,मायके की आदतें छोड़ दो।बेटी ब्याहने लायक हो गई कुछ…
मुसाफिर<br />
<br />
शिवानी की जबसे सगाई हुई थी उसे एक सपना अक्सर आने लगा था।यहाँ तक कि वो सोते में हड़बड़ा कर उठ जाया करती थी।माँ के समझाने के बाद भी डर कम नहीं हो रहा था।आज भी ऐसा ही हुआ जैसे ही शिवानी उठी पास में सोई माँ और दादी भी जग गईं।<br />
"सो जा,सब डर चिंता दिमाग से निकाल दे,सब अच्छा ही होगा।"कह कर माँ शिवानी के बाल सहलाने लगी।<br />
क्या हुआ बिट्टो,कोई बुरा सपना देखा क्या?<br />
"हाँ,माँ जी,जब से सगाई हुई तब से दो तीन बार देख चुकी"।माँ ने जवाब दिया।<br />
"बहू,मायके की आदतें छोड़ दो।बेटी ब्याहने लायक हो गई कुछ तौर-तरीके सीख लो,हमारे यहाँ जिससे पूछा जाता है,वही जवाब देता है"।बोल,बिट्टो"।<br />
"हाँ दादी,सपने में मैं रेलगाड़ी का डिब्बा होती हूँ,आगे पीछे जाने अंजाने चेहरे,कुछ बड़ों के,कुछ बच्चों के।रेलगाड़ी सिर्फ दो स्टेशन पर ही आती जाती है।एक स्टेशन पर मायके और दूसरे पर ससुराल लिखा है और दादी,मायके पर तो बहुत कम रुकती है।क्यों दादी"।<br />
सुन बिट्टो,इसमें डरने वाली बात न है,लड़की मुसाफिर है और,मंजिल मायके से ससुराल ही है।जो पुराने डिब्बे हैं वो रीति-रिवाज हैं जो तुम्हें ससुराल जा कर निभाने हैं,और नये डिब्बे आने वाला वंश है जो तुम लाओगी।"दादी मुस्कराते हुये बोली ।<br />
"दोनों स्टेशनों के बीच संबंध ठीक रखने के लिए तुम्हारा यानि मुसाफिर का कर्तव्य है हाँ,मायके में ज्यादा दिन ठहरी लडकियाँ भी अच्छी नहीं लगती।कहकर दादी ने करवट ले ली।माँ की आँखों से आंसू बह रहे थे।शिवानी ने भी सुबकते हुये कहा कि दादी जब सब मैं ही ठीक करूँगी तो मैं मुसाफिर क्यों।मैं तो मजबूत डोरी हुई।"<br />
अब दादी की आवाज़ में भी दर्द था ।उठ कर शिवानी के सिर पर हाथ फेरा,कहने को मायका ससुराल दोनों अपने घर हैं पर ….दादी वाक्य पूरा न कर सकी।<br />
इसलिए ससुराल में ही निभाओ।साथ ही बहू के सर पर भी हाथ फेर दिया ।<br />
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मौलिक व अप्रकाशित ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक 5…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9870202019-06-30T18:29:05.624ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक 51 को सफ़ल बनाने के लिए सभी लघुकथाकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p>
<p>ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक 51 को सफ़ल बनाने के लिए सभी लघुकथाकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p> तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख श…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9869292019-06-30T17:46:36.844ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख शहजाद उस्मानी जी। सादर। </p>
<p>तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख शहजाद उस्मानी जी। सादर। </p> प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभ…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9870192019-06-30T17:45:29.475ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p><span>प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार आद: अर्चना जी।</span></p>
<p><span>प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार आद: अर्चना जी।</span></p> हार्दिक आभार आदरणीय भाई तेज व…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9870182019-06-30T17:44:20.814ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>हार्दिक आभार आदरणीय भाई तेज वीर सिंह जी। </p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय भाई तेज वीर सिंह जी। </p> प्रोत्साहन देते आपके सुंदर शब…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9869282019-06-30T17:43:33.944ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>प्रोत्साहन देते आपके सुंदर शब्दों के लिए दिल से आभार भाई ओम प्रकाश जी। </p>
<p>प्रोत्साहन देते आपके सुंदर शब्दों के लिए दिल से आभार भाई ओम प्रकाश जी। </p> शुक्रिया वीर जी , अमूल्य समय…tag:www.openbooksonline.com,2019-06-30:5170231:Comment:9869272019-06-30T17:43:21.287ZArchana Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/ArchanaTripathi
<p>शुक्रिया वीर जी , अमूल्य समय निकालने और प्रेरणादायक प्रतिक्रिया देने के लिए</p>
<p>शुक्रिया वीर जी , अमूल्य समय निकालने और प्रेरणादायक प्रतिक्रिया देने के लिए</p>