"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-48 (विषय: जागृति) - Open Books Online2024-03-29T15:46:14Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/48-4?commentId=5170231%3AComment%3A979670&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदाब। बढ़िया उम्दा विचारोत्तेज…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9800112019-03-31T18:27:19.107ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। बढ़िया उम्दा विचारोत्तेजक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय साहिबा।</p>
<p>आदाब। बढ़िया उम्दा विचारोत्तेजक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय साहिबा।</p> रचना के मर्म को समझते हुए अनु…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9800102019-03-31T18:21:28.845ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>रचना के मर्म को समझते हुए अनुमोदन और मुझे हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता जी।</p>
<p>रचना के मर्म को समझते हुए अनुमोदन और मुझे हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता जी।</p> आदाब। मेरे इस नवीन प्रयास पर…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9799162019-03-31T18:19:53.302ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। मेरे इस नवीन प्रयास पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और मुझे प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब।</p>
<p>आदाब। मेरे इस नवीन प्रयास पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और मुझे प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब।</p> मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आद…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9799142019-03-31T17:12:58.322ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p> आभार आदरणीया बबिता जी।tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9799132019-03-31T16:59:39.661ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार आदरणीया बबिता जी।</p>
<p>आभार आदरणीया बबिता जी।</p> कथा के आंतरिक भाव परखने के लि…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9800092019-03-31T16:47:16.326ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>कथा के आंतरिक भाव परखने के लिए विनम्र आभार , आदरणीय ओमप्रकाश जी</p>
<p>कथा के आंतरिक भाव परखने के लिए विनम्र आभार , आदरणीय ओमप्रकाश जी</p> विनम्र आभार , आदरणीय विनय कुम…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9798062019-03-31T16:44:54.979ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>विनम्र आभार , आदरणीय विनय कुमार जी , यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि मजदूर लोग अपने जीवन में बड़े और छोटे सैकड़ों मकान बनाते हैं पर अपनी सीमाओं के बारे में जागृत रहते हैं परन्तु मकान बनवाने वाले, मेरा भवन , मेरा महल, कहते कहते सीमाएं लाँघते हैं और अंत में उनमें चमगीदड़ों का ही निवास देखा जाता है। सादर।</p>
<p>विनम्र आभार , आदरणीय विनय कुमार जी , यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि मजदूर लोग अपने जीवन में बड़े और छोटे सैकड़ों मकान बनाते हैं पर अपनी सीमाओं के बारे में जागृत रहते हैं परन्तु मकान बनवाने वाले, मेरा भवन , मेरा महल, कहते कहते सीमाएं लाँघते हैं और अंत में उनमें चमगीदड़ों का ही निवास देखा जाता है। सादर।</p> विनम्र आभार , आदरणीय समर कबीर…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9800082019-03-31T16:42:52.985ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>विनम्र आभार , आदरणीय समर कबीर जी</p>
<p>विनम्र आभार , आदरणीय समर कबीर जी</p> विनम्र आभार , आदरणीय आसिफ जीtag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9798052019-03-31T16:42:00.749ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>विनम्र आभार , आदरणीय आसिफ जी</p>
<p>विनम्र आभार , आदरणीय आसिफ जी</p> विनम्र आभार , आदरणीय शेख शहजा…tag:www.openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9799122019-03-31T16:41:00.837ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>विनम्र आभार , आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी।<br></br> सुन्दर सुझावों के लिए धन्यवाद। निवेदन है कि मजदूर वर्ग अपनी बातचीत को जिन शब्दों से शुरू करता है और जिन से अंत करता है यदि उन्हें ज्यों का त्यों लिखा जाता है तो वह साहित्य में विकृति मानी जाएगी साथ ही स्थानीय बोली के शब्दों को अलग से अर्थ देना पड़ते , इसलिए उन्हें सहज भाषा में ही लिखना उचित समझा गया । <br></br>समापन के लिए आपके द्वारा प्रस्तावित वाक्य तब उपयुक्त होता जब निर्माण कौशल की बात केंद्र के शीर्ष में होती। चूकि यहाँ "जागृति" पर कथन को फोकस…</p>
<p>विनम्र आभार , आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी।<br/> सुन्दर सुझावों के लिए धन्यवाद। निवेदन है कि मजदूर वर्ग अपनी बातचीत को जिन शब्दों से शुरू करता है और जिन से अंत करता है यदि उन्हें ज्यों का त्यों लिखा जाता है तो वह साहित्य में विकृति मानी जाएगी साथ ही स्थानीय बोली के शब्दों को अलग से अर्थ देना पड़ते , इसलिए उन्हें सहज भाषा में ही लिखना उचित समझा गया । <br/>समापन के लिए आपके द्वारा प्रस्तावित वाक्य तब उपयुक्त होता जब निर्माण कौशल की बात केंद्र के शीर्ष में होती। चूकि यहाँ "जागृति" पर कथन को फोकस करना है अतः यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि मजदूर लोग अपने जीवन में बड़े और छोटे सैकड़ों मकान बनाते हैं पर अपनी सीमाओं के बारे में जागृत रहते हैं परन्तु मकान बनवाने वाले, मेरा भवन , मेरा महल, कहते कहते सीमाएं लाँघते हैं और अंत में उनमें चमगीदड़ों का ही निवास देखा जाता है। सादर।</p>