"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-30 (विषय: "उजाला") - Open Books Online2024-03-29T09:45:41Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/30-3?commentId=5170231%3AComment%3A885328&feed=yes&xn_auth=noबहुत ही अच्छी लघुकथा का सृजन…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8862282017-09-30T18:29:16.680ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://www.openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>बहुत ही अच्छी लघुकथा का सृजन किया है आदरणीय वीर मेहता भाई जी, अंतिम पंक्ति बहुत ही प्रेरक है| सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|</p>
<p>बहुत ही अच्छी लघुकथा का सृजन किया है आदरणीय वीर मेहता भाई जी, अंतिम पंक्ति बहुत ही प्रेरक है| सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|</p> आयोजन के अंतिम मिनटों में एक…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861062017-09-30T18:28:36.456Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आयोजन के अंतिम मिनटों में एक लाजवाब लघुकथा से रूबरू करवाया है बही वीर मेहता जी. ज्यादा कुछ लिखने का समय, बस मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें. </p>
<p>आयोजन के अंतिम मिनटों में एक लाजवाब लघुकथा से रूबरू करवाया है बही वीर मेहता जी. ज्यादा कुछ लिखने का समय, बस मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें. </p> रचना पर समय देकर हौसला अफज़ाई…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861412017-09-30T18:25:17.375ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
रचना पर समय देकर हौसला अफज़ाई और विचार साझा करने के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बृजेन्द्र नाथ मिश्र जी।
रचना पर समय देकर हौसला अफज़ाई और विचार साझा करने के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बृजेन्द्र नाथ मिश्र जी। अच्छे विषय पर लघुकथा के सृजन…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861402017-09-30T18:23:14.129ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://www.openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p> अच्छे विषय पर लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया शिखा तिवारी जी</p>
<p> अच्छे विषय पर लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया शिखा तिवारी जी</p> आदरणीय वीर भाई । विषय को बाखू…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8863182017-09-30T18:20:48.594ZRavi Prabhakarhttp://www.openbooksonline.com/profile/RaviPrabhakar
<p>आदरणीय वीर भाई । विषय को बाखूबी परिभाषित किया आपने । लघुकथा की प्रस्तुति बाकमाल । शीर्षक चयन भी उत्तम । हार्दिक शुभकामनाएं</p>
<p>आदरणीय वीर भाई । विषय को बाखूबी परिभाषित किया आपने । लघुकथा की प्रस्तुति बाकमाल । शीर्षक चयन भी उत्तम । हार्दिक शुभकामनाएं</p> वाह.. बढ़िया शिल्प में बेहतरी…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861052017-09-30T18:20:21.396ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
वाह.. बढ़िया शिल्प में बेहतरीन प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी।<br />
सुधार लें-(/घंटों सोचने के बाद/)
वाह.. बढ़िया शिल्प में बेहतरीन प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी।<br />
सुधार लें-(/घंटों सोचने के बाद/) Dhanywad adarniya di. Abhi ma…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861042017-09-30T18:14:27.899ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://www.openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
Dhanywad adarniya di. Abhi main jahan hoon network ki problem ho rahi hain.kathayen sab ki padh nahi paayi hoon jiska mujhe khed hai.
Dhanywad adarniya di. Abhi main jahan hoon network ki problem ho rahi hain.kathayen sab ki padh nahi paayi hoon jiska mujhe khed hai. Apko katha pasand aayi sartha…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8863172017-09-30T18:12:34.746ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://www.openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
Apko katha pasand aayi sarthak hua ye prayas. Sadar dhanywad aadarniya Chandresh bhaiya.
Apko katha pasand aayi sarthak hua ye prayas. Sadar dhanywad aadarniya Chandresh bhaiya. जीत की ओर - 'द सर्वाइव'
(विश्…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861012017-09-30T18:12:05.538ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
जीत की ओर - 'द सर्वाइव'<br />
(विश्याधारित - उजाला)<br />
"जाके पैर न फ़टी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।" अपने आसुओं को जज्ब करती हुयी वह मन ही मन बुदबुदा उठी।<br />
जब से घर लौटी थी वह, अंधेरें में ही सिमट गयी थी। कमरे की खिडक़ी पर लगे शीशो को भी, अखबारी कागजों से बंद कर बाहर की रौशनी को अंदर आने से रोक दिया था उसने। अपनों की नजर में हमदर्दी थी या बेचारगी, पता नहीं। लेकिन दोनों ही बातें उसके मन को आहत कर रही थी। अपनों की सांत्वना उसको कुछ शांत तो कर रही थी लेकिन घँटों सोचने के बाद भी, 'जो हुआ उसको स्वीकार करे या…
जीत की ओर - 'द सर्वाइव'<br />
(विश्याधारित - उजाला)<br />
"जाके पैर न फ़टी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।" अपने आसुओं को जज्ब करती हुयी वह मन ही मन बुदबुदा उठी।<br />
जब से घर लौटी थी वह, अंधेरें में ही सिमट गयी थी। कमरे की खिडक़ी पर लगे शीशो को भी, अखबारी कागजों से बंद कर बाहर की रौशनी को अंदर आने से रोक दिया था उसने। अपनों की नजर में हमदर्दी थी या बेचारगी, पता नहीं। लेकिन दोनों ही बातें उसके मन को आहत कर रही थी। अपनों की सांत्वना उसको कुछ शांत तो कर रही थी लेकिन घँटों सोचने के बाद भी, 'जो हुआ उसको स्वीकार करे या प्रतिकार करे' का निर्णय वह नहीं कर पा रही थी। और सबसे बड़ा प्रश्न था।......<br />
"दूसरों का सामना कैसे करूँ, जब मैं खुद का सामना ही नहीं कर पा रही हूँ।" सोचते हुए वह खिड़की में लगे शीशे के सामने आ खड़ी हुई।<br />
"क्या अपराध था मेरा?"<br />
"यही.... कि तुमने मेरी होने से मना कर दिया।" सहसा ही धुंधले शीशे में 'उसका' दुष्ट चेहरा कुटिल मुस्कान लिये आ खड़ा हुआ। "और अब तुम्हारा कोई होना भी नहीं चाहेगा।"<br />
"नहीं ऐसा नहीं होगा।" वह सहम कर पीछे हट गयी, मन का अंधेरा और गहराने लगा।<br />
कुटिल मुस्कान ठहाकों में बदलने लगी। एकाएक भीतर का अँधेरा आक्रोश बन शीशे से जा टकराया और शीशा टूटकर बिखर गया। शैतान कई टुकड़ो में बंट कर बिखर गया। शीशे पर लगा अखबार आधा फटने के बाद हवा में फ़ड़फ़ड़ाने लगा और टूटी खिड़की से छनकर आती रौशनी ने सहज ही उसकी आखों को उजाले से भर दिया, उसका तन-मन आलोकित होने लगा था। उसकी आँखें देर तक खिड़की पर लगी रही। उसका आत्मविश्वास अनायास ही लौटने लगा था और कुछ ही लम्हों में वह एक निर्णय कर चुकी थी। उसने हाथ बढ़ाकर उस फ़टे हुए अखबार को खींच कर मुट्ठी में भर लिया जिस पर फ़ोटो सहित खबर छपी हुयी थी...... "ऐ कैफ़े रन बाई एसिड अटैक सर्वाइववर्स।"<br />
(मौलिक व् अप्रकाशित) Dhanywad sir sadar namantag:www.openbooksonline.com,2017-09-30:5170231:Comment:8861002017-09-30T18:11:26.463ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://www.openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
Dhanywad sir sadar naman
Dhanywad sir sadar naman