"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 27 में स्वीकृत लघुकथाएँ - Open Books Online2024-03-28T22:52:45Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/27-2?feed=yes&xn_auth=noभंवर
चलचित्र की भांति शांति…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-20:5170231:Comment:8681402017-07-20T17:59:42.372ZManisha Saxenahttp://www.openbooksonline.com/profile/ManishaSaxena
<p>भंवर</p>
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<p>चलचित्र की भांति शांति की बातें रह रह कर दिमाग में घूम रहीं थीं इतनी सुन्दर व भोली लड़की अपनी दुर्बलताओं के कारण भंवर में फंसती चली गयी|नौकरी छोड़ने से पहले एक के बाद एक धमाके कर रही थी |इतनी सुघड़ता से काम करने वाली खुशमिजाज़ लड़की प्यार के भंवर में फंस गई |साल भर से उसकी कोई खबर नहीं ,</p>
<p>पता नहीं किस हाल में है -----</p>
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<p> “शांति ने आज फिर इतनी देर लगा दी ,झाडू –बर्तन सब पड़ा है |पता नहीं क्या करती रहती है आजकल ,ज़रूर फोन पर बतिया रही…</p>
<p>भंवर</p>
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<p>चलचित्र की भांति शांति की बातें रह रह कर दिमाग में घूम रहीं थीं इतनी सुन्दर व भोली लड़की अपनी दुर्बलताओं के कारण भंवर में फंसती चली गयी|नौकरी छोड़ने से पहले एक के बाद एक धमाके कर रही थी |इतनी सुघड़ता से काम करने वाली खुशमिजाज़ लड़की प्यार के भंवर में फंस गई |साल भर से उसकी कोई खबर नहीं ,</p>
<p>पता नहीं किस हाल में है -----</p>
<p> </p>
<p> “शांति ने आज फिर इतनी देर लगा दी ,झाडू –बर्तन सब पड़ा है |पता नहीं क्या करती रहती है आजकल ,ज़रूर फोन पर बतिया रही होगी |सारी बातें इसे फोन पर ही कर लेनी होती हैं ,ये फोन ही इस लड़की को ले डूबेगा|”</p>
<p> “आंटी ..आंटी”</p>
<p>“बातें बाद में ,पहले जल्दी से कुकर ,कढाई धो दे ,दाल सब्जी बनानी है “</p>
<p>तभी उसके फोन की घंटी बजने लगी |वह फुर्ती से बरामदे में चली गई |पंद्रह मिनिट बाद आई ,हँसते हुये कहती है “कृष्णा को तो ज़रा जरा सी बात पर फोन करके बात करनी होती है |मैं जो कहूं वही करता है ,जो खाना चाहूँ वही ले देता है |</p>
<p>“करता क्या है”</p>
<p>“ओला कंपनी में ड्राइवर है”</p>
<p>“पढ़ा लिखा है या तुम्हारी तरह बस साईन भर करना जानता है”</p>
<p>“आंटी बड़े घर का है ,इंटर पास है |काला है तो क्या मैं तो गोरी हूँ ना !”</p>
<p>“मौहल्ले में सब उससे डरते हैं दादा टाइप है न ,पुलिस वालों से भी दोस्ती है उसकी |</p>
<p>कहता है जबसे मुझसे दोस्ती हुई है किसी और लड़की की तरफ उसका देखने का मन ही नहीं करता है |शादी के बाद मुझसे काम भी नहीं करवाएगा |”</p>
<p>“पिछली बार आंटी ३०० रू. आपसे ले गई थी ना जन्मदिन की टीशर्ट दी थी तो देखा</p>
<p>उसकी पीठ पर दागा हुआ नंबर है ,कहरहा था बैंक में चोरी करते समय कैमरे में फोटो आ गई,इसलिये पुलिस ने पकड़ लिया ,हर महीने हाजिर होना पड़ता है पर अब वो सुधर रहा है ,केस भी जल्दी सुलट जाएगा| </p>
<p>“हमलोगों ने मंदिर में शादी कर ली है , मां बाप राज़ी नहीं हैं ,कमरा किराए पर लेकर रहेंगे |सास ननद का लफड़ा भी नहीं रहेगा |”</p>
<p>“कोर्ट में की गयी शादी वैध मानी जाती है मंदिर की नहीं”</p>
<p>“हाँ आंटी ,और भी लोग ये बात कह रहे थे ,कृष्णा कहता है उसकी बहिन की शादी हो जाए फिर हमलोग कोर्ट में भी शादी कर लेंगे |”</p>
<p>“आंटी महीना नहीं हुआ तो बच्चा ठहर जाता है क्या ?”</p>
<p>“सरकारी अस्पताल में दिखा दो,जांच में पता लग जाएगा|”</p>
<p>“आंटी बच्चा अभी नहीं चाहिए ,कैसे पालेंगे ?कल कृष्णा की नौकरी छूट गयी है| ग्राहक ने शिकायत कर दी ,शराब पीकर गाड़ी चला रहा था |कहता है बच्चा ठहर गया तो गिरा देंगे |पड़ोस वाली भाभी कह रही थी अगर ४ महीने हो गए हैं बच्चा गिरा नहीं सकते हैं| उनको अस्पताल में आया टाईप की औरत मिली थी कह रही थी कोई बच्चा ना चाहे तो हमको दे देना हम पाल लेंगे |दस हज़ार रु, तुमको दे देंगे |मैंने भी कह दिया लड़का होगा तो घरवाले हमलोगों को रख लेंगे| लड़का हो या लड़की ,बच्चा तो अपना ही है न ,किसी को क्यों दें ,हैं ना आंटी |”</p>
<p> शांति दिखाई नहीं पड़ी मौहल्ले में चर्चा थी की वह मीरगंज की गली में कमरा लेकर रह रही है ,उसके लड़की हुई है | </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p> धन्यवाद् आदरणीय संजय जी | tag:www.openbooksonline.com,2017-07-17:5170231:Comment:8672272017-07-17T06:58:15.547ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://www.openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
<p>धन्यवाद् आदरणीय संजय जी | </p>
<p>धन्यवाद् आदरणीय संजय जी | </p> यथा निवेदित तथा संशोधित.tag:www.openbooksonline.com,2017-07-10:5170231:Comment:8656312017-07-10T04:36:47.851Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित तथा संशोधित.</p>
<p>यथा निवेदित तथा संशोधित.</p> आदरणीय महोदय, विद्वान मित्रों…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-05:5170231:Comment:8651182017-07-05T17:15:11.087ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>आदरणीय महोदय, विद्वान मित्रों के सुझावों का आदर करते हुए निवेदन है कि क्रमांक ४ पर अंकित मेरी कथा का शीर्षक 'देवकीनंदन' के स्थान पर "भंवरजाल" करने की कृपा करें। </p>
<p>आदरणीय महोदय, विद्वान मित्रों के सुझावों का आदर करते हुए निवेदन है कि क्रमांक ४ पर अंकित मेरी कथा का शीर्षक 'देवकीनंदन' के स्थान पर "भंवरजाल" करने की कृपा करें। </p> लघुकथा गोष्ठी के कुशल आयोजन क…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-01:5170231:Comment:8645602017-07-01T14:14:59.197ZNita Kasarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NitaKasar
लघुकथा गोष्ठी के कुशल आयोजन की सफलता के लिये व त्वरित संकलन हेतु बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनायें आ० योगराज प्रभाकर जी ।गोष्ठी में शिरकत करने वाले सभी सदस्यों को बधाईयां व शुभकामनायें ।।कथा क्रमांक १४ पर मेरी कथा गले की हड्डी को संपादित कर पुन:प्रस्तुत करना चाहती हंू ।कृपया इस कथा को संकलनमें शामिल करियेगा ।<br />
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गले की हड्डी<br />
क्या बात है भाभी,अभी तो मिलकर आई हूँ आप सब से ?<br />
और आप फिर फ़ौरन आने के लिये कह रही है ।क्या अम्मा !!!!<br />
हाँ विधिजीजी अम्मा अभी अभी ....कहते कहते फ़ोन कट गया ।<br />
घर के कामकाज से…
लघुकथा गोष्ठी के कुशल आयोजन की सफलता के लिये व त्वरित संकलन हेतु बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनायें आ० योगराज प्रभाकर जी ।गोष्ठी में शिरकत करने वाले सभी सदस्यों को बधाईयां व शुभकामनायें ।।कथा क्रमांक १४ पर मेरी कथा गले की हड्डी को संपादित कर पुन:प्रस्तुत करना चाहती हंू ।कृपया इस कथा को संकलनमें शामिल करियेगा ।<br />
<br />
गले की हड्डी<br />
क्या बात है भाभी,अभी तो मिलकर आई हूँ आप सब से ?<br />
और आप फिर फ़ौरन आने के लिये कह रही है ।क्या अम्मा !!!!<br />
हाँ विधिजीजी अम्मा अभी अभी ....कहते कहते फ़ोन कट गया ।<br />
घर के कामकाज से फ़ुरसत हो,आराम करने का सोच ही रही थी कि ,<br />
भाभी के फ़ोन ने नींद उड़ा दी ।अम्मा की लंबी बीमारी के चलते हमारी दुनिया ,<br />
उन्हीं तक सीमित हो गई ।मायका स्थानीय हो तो एक पाँव मायके में ,दूसरा गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों में घनचक्कर हो जाता है।<br />
<br />
'रोहित मैं अम्मा के घर जा रही हूँ वे नही रही '।पति के मोबाइल पर मैसेज भेज पीहर आ गई।रास्ते भर अम्मा का ख़्याल संवेदनशील करता रहा ।घर में पहुँचते ही महिलाऔ की खुसुरफुसुर ने दीवारों के कान बन दिमाग की घंटियाँ बजा दी ।<br />
"तेरहवीं तक खाना घर पर नही बनेगा,बेटी के घर से आ सकता है क्योंकि वे पराये घर की होती है ।"<br />
बुज़ुर्ग बुआ ने विधि को देखते पास बैठा कर कहा ।<br />
बुआ क्या कह रही हो ? माँ ने कभी पराया नही समझा मुझे,विधि ने धीरे से बुआ से कहा । उसके पाँव के नीचे जमीन खिसक रही हो जैसे । पूरे कुनबे का खाना,पति की तनख़्वाह बाप रे !!<br />
रोहित की सीमित तनख़्वाह ,घर बच्चे कितनी ज़िम्मेदारियाँ है मुझ पर ,और ये कैसी घटिया परंपरा है ।कि तेरहवीं तक खाना बेटी के ही घर से आयेगा ।<br />
सोचते सोचते,चक्कर आ गया।चेहरे पर पानी के छींटे पड़ते ही होंश आया तो भाभी को कान में बुदबुदाते पाया।<br />
<br />
विधि जीजी ना घबरायें,ये आपका ही घर है । फिर मेरा पीहर भी तो यही है ना ।ननद रानी के नाम से खाना भाभी के पीहर से आ सकता है ।<br />
घटिया परंपरा की नाक में नकेल हम ही डालेगीं निश्चित रहें ।<br />
परंपरा जब बेड़ी बन जाये तो ,तोड़ने की पहल हम ही करेंगी,साथ देंगी ना मेरा । त्वरित संशोधन के लिए सादर हार…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-01:5170231:Comment:8644692017-07-01T08:35:34.341ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
त्वरित संशोधन के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी।
त्वरित संशोधन के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी। जी.एस.टी लागू होने से पता नही…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-01:5170231:Comment:8645472017-07-01T06:19:35.259Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>जी.एस.टी लागू होने से पता नहीं कुछ निकलेगा भी या नहीं पर इसने मेरा धुआँ अवश्य निकाल दिया. आयोजन के दोनों दिन बाहर से आये टैक्स माहिरीन के साथ बेहद मसरूफ रहा. लेकिन मैं ट्रेनिंग/सेमीनार की ब्रेक के दौरान (और सुट्टे के बहाने भी) बीच बीच में आयोजन देखता भी रहा और टिप्पणियाँ करता रहा. लेकिन खुशकिस्मती से कल ऑफिस से वक़्त पर निकलने की वजह से न केवल सभी रचनाओं पर टिप्पणी देने में ही सफल रहा बल्कि आयोजन ख़तम होने से पहले संकलन भी पोस्ट करने में कामयाब रहा. बहरहाल इस हकीर की हौसला अफजाई करने के लिए…</p>
<p>जी.एस.टी लागू होने से पता नहीं कुछ निकलेगा भी या नहीं पर इसने मेरा धुआँ अवश्य निकाल दिया. आयोजन के दोनों दिन बाहर से आये टैक्स माहिरीन के साथ बेहद मसरूफ रहा. लेकिन मैं ट्रेनिंग/सेमीनार की ब्रेक के दौरान (और सुट्टे के बहाने भी) बीच बीच में आयोजन देखता भी रहा और टिप्पणियाँ करता रहा. लेकिन खुशकिस्मती से कल ऑफिस से वक़्त पर निकलने की वजह से न केवल सभी रचनाओं पर टिप्पणी देने में ही सफल रहा बल्कि आयोजन ख़तम होने से पहले संकलन भी पोस्ट करने में कामयाब रहा. बहरहाल इस हकीर की हौसला अफजाई करने के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब. </p> आपका हार्दिक स्वागत है. tag:www.openbooksonline.com,2017-07-01:5170231:Comment:8646422017-07-01T06:11:53.423Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आपका हार्दिक स्वागत है. </p>
<p>आपका हार्दिक स्वागत है. </p> आपकी बधाई सर-आँखों पर. आपने ब…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-01:5170231:Comment:8643802017-07-01T06:11:36.362Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आपकी बधाई सर-आँखों पर. आपने बिलकुल सही फरमाया आ० मोहम्मद आरिफ साहिब कि यह आयोजन कई मायनों में अनूठा रहा. कई अनछुए विषयों पर साथिओं द्वारा कलम आजमाई करना एक शुभ संकेत हैI </p>
<p>आपकी बधाई सर-आँखों पर. आपने बिलकुल सही फरमाया आ० मोहम्मद आरिफ साहिब कि यह आयोजन कई मायनों में अनूठा रहा. कई अनछुए विषयों पर साथिओं द्वारा कलम आजमाई करना एक शुभ संकेत हैI </p> उत्साहवर्धन के लिए दिल से शुक…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-01:5170231:Comment:8645442017-07-01T06:04:18.188Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>उत्साहवर्धन के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आ० तेजवीर सिंह भाई जी. </p>
<p>उत्साहवर्धन के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आ० तेजवीर सिंह भाई जी. </p>