For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ,लखनऊ-चैप्टर की साहित्य-संध्या वर्ष माह जनवरी 2020-एक प्रतिवेदन डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

 ओबीओ, लखनऊ-चैप्टर की साहित्य-संध्या वर्ष माह जनवरी 2020 गणतंत्र  दिवस को D-1225, इंदिरा नगर, लखनऊ में कवयित्री सुश्री  संध्या सिंह के आयोज्म में संध्या 3 बजे से आरंभ हुयी I इसमें पहली बार जनपद के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट और युवा कवि ‘माधव’ हरिमोहन बाजपेयी ने प्रतिभाग लिया I कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वर-सरगम से समां बाँध देने वाले कवि घनानन्द पाण्डेय ‘मेघ’ ने की और आयोजन मनोज शुक्ल ‘मनुज’ द्वारा संपन्न हुआ I

 कार्यक्रम के प्रथम चरण में गंभीर प्रकृति की कवयित्री डॉ.अंजना मुखोपाध्याय की दो  कविताओं पर  विमर्श हुआ I पहली कविता थी -आत्मीयता' I इस पर हुए विमर्श का निष्कर्ष  यह था कि परिपक्वता की ओर कदम बढा़ती हुयी नारी की नवीन आत्मीयता को स्वीकार करते हुए रचना की पंक्तियाँ उच्छ्वास रूप में एक सकारात्मक संदेश देती हैं। रचना यह मांग करती है कि रिश्तों के जोड़ने के साथ उन्हें अपने उन पिता-माता को भी आत्मीयता से जोड़े रखना है क्योंकि प्यार के प्रथम गहराई का  एहसास उन्होंने ही दिलाया था। उपस्थित कवियों में माधव हरिमोहन बाजपेयी ने  रचना का  सूक्ष्म विश्लेषण कर रचना की अभिव्यक्ति में छिपे अथवा  संश्लिष्ट कथन, जिसे अंग्रेजी में Read between the lines कहते हैं, उसकी ओर ध्यान दिलाया, जहाँ कविता का शब्द- प्रयोग पाठक को कुछ सोचने का अवकाश देता है और लेखन को एक विस्तृत पृष्ठभूमि की ओर ले जाता है।

 दूसरी कविता का शीर्षक था –‘व्याकुलता का सदर्भ‘  I यह रचना कुछ दार्शनिक प्रश्नों के सन्दर्भ में  रची गई है । इस कविता का एक दिलचस्प पहलू यह है कि इसका सृजन किसी अन्य  कवि की कविता में उठाये गये प्रश्नों की प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ और वे कवि और कोइ नही अपितु ओबीओ कार्यकारिणी के सदस्य शरदिंदु मुकर्जी थे, जो कार्यक्रम में उपस्थित थे I शायद हिदी कविता के इतिहास में ऐसा प्रयोग कभी हुआ हो I यही कारण था कि प्रश्नगत कविता के विमर्श में पहले शरदिंदु जी की कविता 'व्याकुलता' से प्रश्न का अंश समझना पड़ा, फिर उसके उत्तर को आत्मसात करने की स्थिति बनी  I  'व्याकुलता' के प्रथम प्रश्न, शरदिंदु जी का कथन है कि – ‘मैं अपने बोध और चेतना के बीच पुल बांधना चाहता हूँ... क्या तुम में री मदद करोगे?

उक्त प्रश्न के उत्तर में डॉ अंजना का कथन है कि कि इंन्द्रियों से प्राप्त सूचनाएं जब सार्थकता तक पहुंचती हैं तभी एक चेतन समीकरण बनता है।उसका आधार अनेक अनुभव और चाहतों  का परिणाम है। नवजात की व्याकुलता से इसकी शुरुआत होती है जो परिवर्तन और परिमार्जन के पथ से अग्रसारित होकर स्वाभिमान से जुड़ जाती है। इसकी अभिव्यक्ति अन्तर्मन ही सर्वश्रेष्ठ ढंग से कर सकता है। ...सत्य निष्कलंकता  का द्योतक है।जब हम नाम में  ऐसे सत्य का प्रयोग करते हैं तो वह सत्य की सीमा से परे होता है।असत्य संग्यात्मक रुप में  अपकथन है, परन्तु मानव स्वयं अपने असत्य की सीमा निर्धारित करता है ,और उसकी झिझक इस सत्य को इंगित करती है कि वह असत्य की देहरी के करीब है। इनके बीच की सूक्ष्मता विचारों में व्यक्त करने के लिएअन्तर्मन की स्वच्छता ही पर्याप्त है ।
अन्तिम प्रश्न में  कवि जहाँ विभिन्न धर्मांधता  में  शृंखलित ईश्वर का आंतरिक स्पर्श पाना चाहता है....... प्रत्युत्तर स्वरूप वर्तमान रचना इन धर्माधिकारियों के पक्ष में  मानव-मन की सीमित क्षमताओं का उल्लेख करती है।रचना का सारांश इंगित करता है कि अंतरतम का अनुभव ही उनको स्पर्श करने की सार्थकता है।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में  काव्य-पाठ हुआ I संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ के आह्वान पर  डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने माँ सरस्वती के सम्मान में कुछ दोहे पढ़े , जिनकी बानगी इस प्रकार है -

काव्य रसिक समवेत हैं  अद्भुत दिव्य समाज  I

माता अपनी कच्छपी  लेकर आओ आज  II

जब तक माँ होता रहे कविताओं का पाठ  I

तब तक अविचल ही रहे जननी तेरा ठाठ II

दूसरे कवि थे, सदाबहार मृगांक श्रीवास्तव I इनकी प्रतिष्ठा अपनी चुटीली व्यंग रचनाओं  से लोगों को  हँसाना और कदाचित रुलाना भी  I नव वर्ष की शुभकामना का  उनका एक अंदाज पेश है –

नए वर्ष में अग्रजों का वंदन  और अनुजों को आशीष 

निश्चय होगा मंगलमय  यह वर्ष है  पिछ्ले से बीस

और बढ़ता रहे आपकी जिन्दगी का सेंसेक्स और निफ्टी

पूरी  करे सब आशायें,  यह नव वर्ष  टवंटी टवंटी II

 टीवी के सीरियल्स के सिवाय आज कोई  किसी से उसकी उदासी का कारण नहीं  पूछता I किसे फ़िक्र हो और क्यों हो ? संवेदनाएं मरती जो जा रही हैं I  ऐसे में यदि कोई  कवयित्री अपने किसी प्रिय से उसकी उद्विग्नता का मर्म जानना चाहती है तो यह स्पृहणीय है I इस परिप्रेक्ष्य में कवयित्री निवेदिता सिंह की संवेदना निम्नवत है -

क्या रहा तलाश तू ?

जो है यूँ उदास तू

क्या तेरा खो गया ?

जो गुमसुम सा हो गया I

 

कवि प्रबोध कुमार ‘राही ‘कश्मीर की पुरानी  चिता से ग्रस्त दिखे –

मिटने नहीं हम भारत की हम तकदीर देंगे I 

चाहे कुछ हो पर हम नहीं  कश्मीर देंगे II

 

कवि का अपना एक मूड होता है कभी वह  कविता से बहुत दूर होता है और कभी वह  कविता के बीच ही जीता है,  मरता है i इस भावना को कवयित्री नमिता सुन्दर ने बहुत अच्छी अभिव्यक्ति दी है –

मैंने बहुत दिनों से  / नहीं लिखी/ कोई कविता / पर माह भर से  / हर दिन / /किन रंगों में घुलता है आसमान  / इसका मुझे है / /बिलकुल ठीक-ठीक पता I 

 कथाकार एवं कवि डॉ. अशोक शर्मा ने ‘आओ चलें लिखें कवितायें’ कहकर कविता में अपनी पैठ का परिचय दिया I 

 शिवतनया ‘रेवा’  जिन्हे हम नर्मदा नदी  के नाम से जानते  हैं ,उनके संबंध में एक विश्रुत किवदन्ती है जिसका आलंबन लेकर  डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव  ने अपनी कविता ‘आज भी रोती  है वह नदी’ का पाठ किया i इस लंबी कविता का एक अंश इस प्रकार है-

रात के सन्नाटे में / जंगल में, बियाबान में / अँधेरे में, मैदान में / लोग सुनते है / नर्मदा का क्रंदन.

आप भी चाहते हैं / यदि सत्य यह जानना/ तो कभी किसी रात को  / तट पर जाइये / और शिवपुत्री को रोता हुआ पाइए/ /आप सुनेंगे वहां /ऐसा अवसाद गीत / /जिसका कोई अंत नहीं / क्योंकि  प्रलयकाल में भी / नष्ट नहीं होगी वह / ऐसा वरदान है.

 कवयित्री नीरजा शुक्ला ने जमाने की दुश्वारियो की चर्चा करते हुए अपने हौसले का भी परचम कुछ इस तरह लहराया=

जिदगी की जिद है हमे हराने की

हमने भी कसम खाई है मुस्कराने की

ज़रा वक्त ने क्या तेवर बदले

हकीकत सामने आ गयी जमाने की

 डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने दो छोटी-छोटी क्षणिकाएं सुनाईं I पहली रचना में मन के बाहर और भीतर की स्थिति का पर्दाफाश प्रतीकों के माध्यम से किया गया है -

बहुत शोर है बाहर--- / विडम्बनाओं का अन्धेरा / और विचारों की आतिशबाजी है / अन्दर सन्नाटा है

दूसरी क्षणिका में अविराम जीवन यात्रा के अवसान का संकेत है जब उल्टी गिनती शुरू हो जाती है, तब –

अपने भीतर / किसी अनजानी राह पर  / जल उठे चिराग / और चौखट पर मुस्कराता हुआ मैं  / दीपक लेकर / प्रतीक्षा करता रहा / मेरे स्वागत की तैयारी में  

 डॉ. अंजना मुखोपाध्याय ने अपने और अपनों से बहुत कुछ छिपाने की बात कही I अपने से छिपाने की बात गुह्य है, इसका प्राकट्य नहीं होता यह जानने से कहीं अधि समझने की चीज है I इसी तरह बिघ्न-बाधा (अंतराय) बनकर कोहरे से तैरने में भी एक प्रश्न है कैसा अंतराय , किसके लिए और क्यों ? इसे समझने के लिएशायद पूरी कविता में उतरने की बाधा हो I फिलवक्त इतना ही-  

छुपाया मैंने बहुत कुछ अपने से, अपनों से

तैरती थी अन्तराय बन कोहरे सी अरसों से

 गजलकार भूपेंद्रसिंह ‘होश लखनवी’ ने पहले कुछ मिसरे सुनाये फिर उन्होंने बातरन्नुम एक गजल पढ़ी, जिससे लगा कि जिन्दगी से वह बहुत ज्यादा खफा है क्योंकि वह एक अवसादवादी (SADDIST)  की तरह उन्हें त्रास देती है और फिर अपने आप में मुस्कराती है I

जीस्त से यूँ गुजर रहा हूँ मैं I

जैसे किश्तों में मर रहा हूँ मैं II

 प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट और युवा कवि ‘माधव’ हरिमोहन बाजपेयी नेअपनी गजल से सभी को मुतासिर किया I एक मान्यता  है  कि समय इंसान से पल-पल  का हिसाब मांगता है I मगर वह  शायर क्या करे जिसकी फितरत कुछ ऐसी हो -

इसपे-उसपे ही वार दी मैंने I

जिन्दगी यूँ ही गुजार दी मैंने II

 

कवयित्री सुश्री संध्या सिंह ने अपनी कविता में ख्वाहिशो के बरक्स अपनी खामियों और गलतियों पर नजर डालने का प्रयास भी किया है जो आत्म मुग्धता में अक्सर हम नही करते I कुछ बानगी इस प्रकार है –

जब चले उम्मीद ले कर ख्वाइशों की भीड़ में I

हाथ पकड़े चल पड़ीं कुछ हिचकिचाती गलतियां II

 संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ जी युवा कवि हैं I वीर रस के कवि हैं I वे युद्ध-वीर भले ही न हों पर कर्मवीर, दानवीर और दयावीर अवश्य हैं I वीर रस भले ही युद्ध वर्णन में अधिक छजता है पर उसका स्थाई भाव ‘उत्साह’ है I जो वीर रस के भेद-विभेद से परिचित हैं वे मनुज की आक्रोश, आवेश और उत्साह से भरी कविता को निश्चय ही वीर रसात्मक कहेंगे i एक बानगी प्रस्तुत है -

विद्वान् मूक बनकर जब घूम रहे है सब

तब वाचालों के धूर्त चरण इतराते हैं I

 कवयित्री अर्चना प्रकाश ने भी जीवन से संबधित कविता पढ़ी और उसके विरोधाभासी स्वरुप को इस प्रकार व्यक्त किया-

पल-पल लुभाती दूर जाती जिन्दगी

कभी धूप कभी छवि सजाती जिन्दगी

 कवयित्री निवेदिता श्रीवास्तव की पंजाबी माहिया (12,10,12)की तर्ज और शिल्प पर आधारित हिंदी कविता भी जीवन से ही जुडी थी I पर इसमें स्पंदन है I एक जिजीविषा है, साथ ही एक सजग चातुर्य भी है I जैसे –

ये दिन आजादी के

होश जोश में हों

वरना बर्बादी के  

 इसके बाद अध्यक्ष की बारी थी I कवि घनानन्द पाण्डेय ‘मेघ’पर स्वर साम्राज्ञी माँ सरस्वती की विशेष कृपा है  i उन्होंने  दो कवितायें  सुनाईं I  दूसरी कविता में माँ सरस्वती का स्मरण किया गया है  I कवि की मान्यता है  कि माँ के लिए जिसके हृदय  में प्यार नहीं  है , वह  हिन्दुस्तानी नहीं है i अपनी भाषा और संस्कृति  पर इतनी बेबाक आस्था आँख खोल देने वाली थी और यही वह चरम बिदु(CLIMEX) था , जहाँ साहित्य संध्या स्थगित हुयी I

 हाथ में हैं कलम और कागज लिए

आँख में एक भी बूँद  पानी नहीं I

भारती के लिए प्यार जिसमें  न हो

वो दिशाहीन हिन्दोस्तानी नहीं II

 कार्यक्रम की आयोजिका सुश्री संध्या सिंह का आतिथ्य बड़ा ही समृद्ध और सौहार्दपूर्ण था I काव्य-रस के बाद षटरस का भरपूर आनन्द लेकर सभी आप्यायित हुए I मैं चाय की चुस्कियों के बीच सोचता रहा-

संस्कृति देश की है प्राचीनतम,

यह कथा गल्प अथवा कहानी नहीं

है ये अविराम थोड़ा लचीली भी है

पर पयस है महज स्वच्छ पानी नहीं

यह पली है सहनशीलता धैर्य में 

ऐसी उद्दाम कोइ रवानी नहीं

हैं उदात्त हम तो ग्रहणशील भी

और अध्यात्म की कोई सानी नही       

दूर भौतिक चमक से रहे हम सदा

ऐसी धरती कहीं और धानी नही

दे  गए पूर्वज जो हमें सौंपकर

वैसी अन्यत्र जग में निशानी नहीं

वन्दे मातरम् I       (सद्य रचित )  

 

Views: 283

Attachments:

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
24 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
25 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
25 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
25 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
27 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
36 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service