ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या, माह अक्टूबर, 2016 – एक प्रतिवेदन
ले. डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव
शनिवार 22 सितम्बर 2016 को सायं 4 बजे ओ बी ओ, लखनऊ चैप्टर की साहित्य-संध्या का आगाज डॉ० शरदिंदु मुख़र्जी के आवास रोहतास एन्क्लेव, फैजाबाद रोड, लखनऊ में हुआ. कार्यक्रम के प्रथम चरण में A .P. N. NEWS CHANNEL के परामर्शी सम्पादक डॉ० गोविन्द पन्त ’राजू’ का परिचय एक कवि, पत्रकार और पर्वतारोही के रूप में कराते हुए डॉ मुखर्जी ने उनसे हाल में एवरेस्ट के बेस कैम्प तक उनकी अपनी यात्रा का अनुभव सभी के साथ साझा करने के लिए आमंत्रित किया. स्लाइड और प्रोजेक्टर के माध्यम से डॉ राजू ने एवरेस्ट अर्थात तिब्बतियों के चोमोलुंगमा (विश्व की देवी माँ ) तथा नेपालियों के सागरमाथा (आकाश की देवी ) के अनेक दुर्लभ एवं विहंगम दृश्य दिखाए. उन्होंने बताया कि ब्रिटिश सर्वेयर जनरल एंड्रयू वॉ (Andrew Waugh) ने सन् 1865 में अपने पूर्ववर्ती सर्वेयर जनरल कर्नल सर जार्ज एवरेस्ट (Colonel Sir George Everest) के सम्मान में चोमोलुंगमा /सागरमाथा का नामकरण ‘एवरेस्ट’ किया था. डॉ० राजू को ट्रेकिंग और पर्वतारोहण का शौक बचपन से था. हिमालय की अनेक चोटियों पर वे कई बार चढ़े किन्तु एवरेस्ट का आकर्षण उन्हें सदैव अपनी ओर खींचता रहा. उनके अनुसार पिछले तीन साल से एवरेस्ट पर जाने का कोई अभियान नहीं हुआ. सन् 2015 ई० के भूकंप में एवरेस्ट बेस कैम्प में 18 लोग मारे गए थे और एवरेस्ट का रास्ता ध्वस्त होकर और अधिक दुर्गम हो गया. सन् 2016 ई० में एवरेस्ट को फिर से चूमने की कोशिशे हुईं. एवरेस्ट अभियान के अपरिहार्य अंग “शेरपा” लोगों की विशेषता पर डॉ राजू ने विस्तार से बात की. उन्होंने कहा कि प्रथम एवरेस्ट विजेता शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने शेरपाओं को एक नयी पहचान दी. तिब्बती भाषा में शेर का अर्थ होता है पूरब तथा प्रत्यय पा का अर्थ होता है ‘लोग’. यानी कि पूरब के लोग.
डॉ० राजू ने बताया कि वे अपने तीन मित्रों के साथ, जो उम्र का साठवां पड़ाव पार कर चुके थे, एवरेस्ट के बेस कैम्प तक इसी वर्ष गये थे. सिक्किम की ओर से नेपाल में प्रविष्ट होने के बाद वायुयान द्वारा आधे घंटे में काठमांडू से लुकला पहुँच गए. लुकला एअरपोर्ट काफी छोटा है और हिमालय की गहन कंदराओं में होने के कारण विश्व का सबसे खतरनाक एअरपोर्ट माना जाता है. यहाँ प्रतिवर्ष दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें औसतन एक-दो लोग मारे जाते हैं. एवरेस्ट के प्रथम विजेता सर एडमण्ड हिलरी और तेनज़िंग नोर्गे ने एवरेस्ट के लिये अपनी आय का एक बड़ा भाग खर्च किया. लुकला हवाई अड्डा और एवरेस्ट बेस कैम्प के विकास में इन महानुभावों का बड़ा हाथ है. आज इतनी सुविधाएं हैं कि 11 वर्ष के बच्चे से लेकर 80 वर्ष तक के वृद्ध भी एवरेस्ट के कदम चूम सकते हैं.
डॉ० राजू और उनके साथी लुकला से नाम्चे बाजार गये जो एवरेस्ट बेस कैम्प से पूर्व एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. यहाँ पर लोग आगे की यात्रा के लिए स्वयं को वातावरण के अनुकूल (Acclimatize) करते हैं. यह गाँव घोड़े की नाल के आकार का है और कांगड़ी से मिलता जुलता है. इस गाँव के कुछ ख़ास स्थलों से एवरेस्ट का प्राथमिक दर्शन होता है. इसे एवरेस्ट का गेट-वे भी कहा जाता है.
अंतत: दूध कोशी नदी पार करके समुद्र तल से 17000 फीट की ऊँचाई पर एवरेस्ट के कैम्प-1 तक पहुँचने में डॉ राजू समेत वयस्कों का यह दल सफल रहा. इनका उत्साह, इनकी जिजीविषा हर किसी के लिए प्रेरणादायी है.
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में युवा कवि मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ के सञ्चालन में सरस काव्यपाठ हुआ, वाणी वंदना को स्वर सुरभित करते हुए मनुज ने कुछ मनोहारी सिंहावलोकन घनाक्षरियां सुनायी और वातावरण को काव्यमय बना दिया.
कवयित्री आभा खरे ने धरी को अपनी कविता में एक नए अंदाज में प्रस्तुत करते हुए कहा-
अना के हाथों
असहमतियों की पथरीली
जमीन पर तोड़ दी थी
वो गुल्लक
जिनमे जमा किये थे
सिक्के तसल्लियों के
‘संन्यासी योद्धा‘ उपन्यास से खासी ख्याति अर्जित करने वाले कौस्तुभ आनंद चंदोला ने एक छोटी किन्तु सारगर्भित कविता पढ़ी –
सुन ओ बसंत
अब जो आना
संचालक मनुज ने अपना अनुभव बयान करते हुए बताया कि किस प्रकार उनका मन किसी रहस्यमय अज्ञात से मिलकर उजाले से भर गया-
रूह ये शिवमय हुयी और तन शिवाला हो गया
आप मुझको मिल गये मन में उजाला हो गया
कवयित्री एवं कथाकार कुंती मुकर्जी ने ‘सिक्का’ और ‘औरत’ शीर्षक से दो कवितायेँ सुनाईं. किस प्रकार देह-व्यापार का सरगना रातों-रात सोने के सिक्कों से खेलने लगता है, इसकी सूक्ष्म अभिव्यक्ति सिक्का कविता में हुयी है. कविता के कुछ अंश इस प्रकार हैं –
वह बेकार था
पर
था बुद्धिमान
उसने सिक्का उछालना
सीख लिया था
प्रख्यात कवयित्री संध्या सिंह ने मासूम बच्चियों पर हो रहे बलात्कार के दर्द को बिम्बों के माध्यम से बांधकर ऐसे अजगुत अंदाज में प्रस्तुत किया जिसमें रहस्य भी था और रोमांच भी. अंतस में किसी तीर की भांति धँस जाने वाली इस कविता की बानगी यहाँ उपलब्ध करायी जा रही है –
जाने क्या हुआ बीती रात
कि मछलियाँ जल से बाहर निकल आयीं
मिट्टी ने अपने बाँझ होने की दुआ माँगी
जहर से नीला पड़ गया समूचा आसमान
और आग चुल्लू भर पानी में डूब मरी
शरदिंदु मुकर्जी ने जीवन में आने वाले उन क्षणों को याद करते हुए ‘सावधान’ नामक कविता पढ़ी जब मनुष्य अपने अहंकार के कारण हद लांघने का प्रयास करते हैं और प्रकृति उन्हें सचेत करती है जिसे मनुष्य कदाचित नहीं सुनता.
यदि तुममें
आवारा बादल बनने की क्षमता है
तो बात अलग है
चाहे गरजो वा बरसो, मदमस्त फिरो
कोइ तुम्हें रोक नहीं सकता –
पर सावधान !
उस नीले गहरे महाशून्य से घबराना
कहीं सृष्टि के मौन गर्भ में खींच न ले
डॉ0 शरदिंदु ने ‘मैं और तुम’ शीर्षक से एक पुरानी, शायद अपने युवा दिनों की एक शृंगारिक कविता सुनायी जिसमें जीवन का राग स्पंदित होते दिखा –
तुम्हारे गजरे का सुबास
स्वयं यहाँ आता है
हर सुबह एक कोयल
कोइ नया राग गाती है
हमने ओस की बूंदों को
पलकों की सेज दिया है
क्या तुमने कभी जाना है ?
शाम का धुंधलका फ़ैल रहा था किन्तु कविता की ज्वाला अपने उफान पर थी. ऐसे वातावरण में अंतिम कवि के रूप में डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने ककुभ छंद पर आधारित अपने गीत में विषाद का प्राकट्य कुछ इस प्रकार किया-
कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे
कब सुख से सूखे लोचन में करुणा के घन लाओगे
करूण रसात्मक इस अभिव्यक्ति के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ जिसकी औपचारिक घोषणा डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ की. आज के आयोजन में सुपरिचित विज्ञान-लेखक श्री विजय कुमार जोशी जी, वैज्ञानिक सर्वश्री घनश्याम सिंह व महेश उपाध्याय एवं सुश्री स्नेह उपाध्याय को श्रोता के रूप में पाकर हम धन्य हुए. सोते से जगे कवि और श्रोता किसी सम्मोहन से त्राण पाकर भी मानो फिर उसी सम्मोहन में डूब जाना चाहते थे . बिहारी ने सच ही कहा है –
तंत्री नाद कवित्त रस, सरस राग, रस-रंग
बूड़े अनबूड़े तिरे जे बूड़े सब अंग
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