"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-129 - Open Books Online2024-03-29T05:43:15Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/129-1?commentId=5170231%3AComment%3A1063955&x=1&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-18:5170231:Comment:10639552021-07-18T15:17:06.211ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।</p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी, अति सु…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-18:5170231:Comment:10639542021-07-18T15:14:25.700ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, अति सुंदर, सामयिक एवं देश भक्ति पूर्ण दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई आपको।</p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, अति सुंदर, सामयिक एवं देश भक्ति पूर्ण दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई आपको।</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-18:5170231:Comment:10641072021-07-18T15:10:34.030ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त विषय के अनुकूल बहुत संदर दोहे। बधाई।</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त विषय के अनुकूल बहुत संदर दोहे। बधाई।</p> आ. भाई चेतन जी, सुंदर दोहे हु…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-18:5170231:Comment:10638692021-07-18T03:40:56.686Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई दयाराम जी, प्रदत्त विष…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-18:5170231:Comment:10638032021-07-18T03:25:21.318Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> दो मुक्तक ( 1 ) कैसे कैसे लोग…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-17:5170231:Comment:10639462021-07-17T18:11:16.474ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>दो मुक्तक <br></br>( 1 ) <br></br>कैसे कैसे लोग गिरगिट सा रंग दिखाते है चुनावों में, <br></br>रातों रात अच्छे भले लोग भी बिक जाते है चुनावों में, <br></br>वोट और नोट का खेल भी खेला जाता है जोर शोर से, <br></br>बाहुबली भी सभी के आगे शीश झुकाते है चुनावों में। <br></br>( 2 ) <br></br>कैसे कैसे लोग खेल रचाते है इस कोरोना काल में, <br></br>झूठ के व्यापार से खूब लूट मचाते कोरोना काल में, <br></br>भ्रष्टाचारी बन शिष्टाचारी आते है मदद करने लुटेरे, <br></br>ऐसे लोग अपने ही पाप बढ़ातेे हैं कोरोना काल में, <br></br>(मौलिक एवं अप्रकाशित)<br></br>-…</p>
<p>दो मुक्तक <br/>( 1 ) <br/>कैसे कैसे लोग गिरगिट सा रंग दिखाते है चुनावों में, <br/>रातों रात अच्छे भले लोग भी बिक जाते है चुनावों में, <br/>वोट और नोट का खेल भी खेला जाता है जोर शोर से, <br/>बाहुबली भी सभी के आगे शीश झुकाते है चुनावों में। <br/>( 2 ) <br/>कैसे कैसे लोग खेल रचाते है इस कोरोना काल में, <br/>झूठ के व्यापार से खूब लूट मचाते कोरोना काल में, <br/>भ्रष्टाचारी बन शिष्टाचारी आते है मदद करने लुटेरे, <br/>ऐसे लोग अपने ही पाप बढ़ातेे हैं कोरोना काल में, <br/>(मौलिक एवं अप्रकाशित)<br/>- दयाराम मेठानी</p> शुभ संध्या, अनीता जी ! मानव…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-17:5170231:Comment:10638642021-07-17T13:45:52.737ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>शुभ संध्या, अनीता जी ! मानव व्यक्तित्व के बिखराव पर कुछ कहने का प्रयास किया है, आपने! कविता को एक बार अच्छे से पढ़ कर पोस्ट किया कीजिए, सु श्री जी ! वर्तनी के दोषों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता मुझे महसूस हुई, यथा, " निर्दोषों" आदि ! ममतामयी होना , सु श्री, मानवता का कम, माँ का ईश्वर प्रदत्त गुण है ! मानवता में " कैसे-कैसे लोग " हैं,यह तो आप बता ही रहीं हैं ! सादर </p>
<p>शुभ संध्या, अनीता जी ! मानव व्यक्तित्व के बिखराव पर कुछ कहने का प्रयास किया है, आपने! कविता को एक बार अच्छे से पढ़ कर पोस्ट किया कीजिए, सु श्री जी ! वर्तनी के दोषों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता मुझे महसूस हुई, यथा, " निर्दोषों" आदि ! ममतामयी होना , सु श्री, मानवता का कम, माँ का ईश्वर प्रदत्त गुण है ! मानवता में " कैसे-कैसे लोग " हैं,यह तो आप बता ही रहीं हैं ! सादर </p> अतुकांत आधुनिक कविता
प्रथम प…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-17:5170231:Comment:10637942021-07-17T13:12:39.594ZAnita sainihttp://www.openbooksonline.com/profile/Anitasaini
<p>अतुकांत आधुनिक कविता</p>
<p></p>
<p>प्रथम प्रस्तुति-</p>
<p></p>
<p>दुछत्ती के कोने में छिपाते हैं<br></br> कुछ कोठरी में टाँगते हैं<br></br> छत पर कुछ छज्जे किनारे रखते <br></br> देखो! कुछ अलगनी पर सजाते हैं<br></br> जाने कैसे-कैसे लोग ?<br></br> जीवन कैसे-कैसे सुखाते हैं ?<br></br> <br></br> समर्पण को डूबोते प्रेम में तैरते हैं <br></br> अहं में जलते और सूरज को सताते हैं<br></br> उसूलों का गाड़ते खूँटा दिन-रात<br></br> देखो! बेड़ियों में निर्बोधों को बाँधते हैं<br></br> जाने कैसे-कैसे लोग ?<br></br> जीवन कैसे-कैसे सुखाते हैं…</p>
<p>अतुकांत आधुनिक कविता</p>
<p></p>
<p>प्रथम प्रस्तुति-</p>
<p></p>
<p>दुछत्ती के कोने में छिपाते हैं<br/> कुछ कोठरी में टाँगते हैं<br/> छत पर कुछ छज्जे किनारे रखते <br/> देखो! कुछ अलगनी पर सजाते हैं<br/> जाने कैसे-कैसे लोग ?<br/> जीवन कैसे-कैसे सुखाते हैं ?<br/> <br/> समर्पण को डूबोते प्रेम में तैरते हैं <br/> अहं में जलते और सूरज को सताते हैं<br/> उसूलों का गाड़ते खूँटा दिन-रात<br/> देखो! बेड़ियों में निर्बोधों को बाँधते हैं<br/> जाने कैसे-कैसे लोग ?<br/> जीवन कैसे-कैसे सुखाते हैं ?</p>
<p></p>
<p>करुणा में कुछ लिप्सा में लिपे <br/>कुछ ऊँन तो कुछ खादी में ढल जाते हैं <br/>ममतामयी मूरत मानवता की<br/>देखो! कुछ संवेदनहीनता के शिखर पर बैठे हैं <br/> जाने कैसे-कैसे लोग ?<br/> जीवन कैसे-कैसे सुखाते हैं ?</p>
<p></p>
<p>दोहराव दिखावे का सादगी में सिमटते हैं <br/> अभावों से जूझते कुछ बबूल बन जाते हैं<br/> नीम पीपल बरगद की कहानी गढ़ते<br/> देखो ! कुछ खरपतवार धरती को निगल जाते हैं <br/> जाने कैसे-कैसे लोग ?<br/> जीवन कैसे-कैसे सुखाते हैं ?</p>
<p><br/> मौलिक व अप्रकाशित</p> दोहे : कैसे- कैसे लोग
भारत…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-17:5170231:Comment:10640362021-07-17T04:56:18.629ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>दोहे : कैसे- कैसे लोग </p>
<p></p>
<p>भारत में रहते सखा, कैसे - कैसे लोग !</p>
<p>सुविधायें सारी चखें माँ- द्रोही ये लोग!!</p>
<p></p>
<p>खाते - पीते देश में, करते हैं हर भोग !</p>
<p>राजनीति करते बहुत, टोपी वाले लोग!!</p>
<p></p>
<p>ज़रखरीद कमबख्त हैं, लगा खुरपका रोग !</p>
<p>भारत की दुर्दशा जग, करते ऐसे लोग !!</p>
<p></p>
<p>जन्म-भूमि स्वर्ग सम हो, द्रोही माँ कमबख्त!</p>
<p>जोंक बने खुद भारती, राग अलापें मस्त !!</p>
<p></p>
<p>रोगी मन से सर्वदा, चूसें माँ का …</p>
<p>दोहे : कैसे- कैसे लोग </p>
<p></p>
<p>भारत में रहते सखा, कैसे - कैसे लोग !</p>
<p>सुविधायें सारी चखें माँ- द्रोही ये लोग!!</p>
<p></p>
<p>खाते - पीते देश में, करते हैं हर भोग !</p>
<p>राजनीति करते बहुत, टोपी वाले लोग!!</p>
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<p>ज़रखरीद कमबख्त हैं, लगा खुरपका रोग !</p>
<p>भारत की दुर्दशा जग, करते ऐसे लोग !!</p>
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<p>जन्म-भूमि स्वर्ग सम हो, द्रोही माँ कमबख्त!</p>
<p>जोंक बने खुद भारती, राग अलापें मस्त !!</p>
<p></p>
<p>रोगी मन से सर्वदा, चूसें माँ का खून!</p>
<p>माँ तू तो सहती बहुत, लगते मुझे बबून !!</p>
<p></p>
<p>देश - धर्म रुचता नहीं, कृतघ्न पक्के लोग!</p>
<p>काम-काज कुछ है नहीं, कर रहे बस भोग !!</p>
<p></p>
<p>गौरव देश - विदेश हो, जगती करके काम!</p>
<p>माँ का सर ऊँचा करें, न हों कभी बदनाम !!</p>
<p></p>
<p>विद्या हमें सिखाती है, जात - पात बेकार!</p>
<p>परिचय दें हम देश का, कर अन्याय प्रतिकार!!</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवम् अप्रकाशित </p> आदाब, लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर'…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-16:5170231:Comment:10637822021-07-16T22:23:45.462ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब, शिल्प की दृष्टि से कहा जाए तो दोहे अच्छे हैं ! किन्तु भाई, साहित्य, विशेष रूप से काव्य ऐसे सत्य का चिन्तन करता है जो सर्व प्रथम शिव है ! तदुपरांत कवि अपने शिल्प के कौशल से ग्राह्य और सुन्दर स्वरूप प्रदान करता है ! कहा भी गया है, काव्य सत्यम शिवम और सुन्दरम की अजस्र त्रिवेणी है!</p>
<p>आपके दोहे, क्षमा करें, मुझे नहीं लगता प्रेरक काव्य का प्रतिदर्श कहे जा सकते हैं ! सादर </p>
<p></p>
<p>आदाब, लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब, शिल्प की दृष्टि से कहा जाए तो दोहे अच्छे हैं ! किन्तु भाई, साहित्य, विशेष रूप से काव्य ऐसे सत्य का चिन्तन करता है जो सर्व प्रथम शिव है ! तदुपरांत कवि अपने शिल्प के कौशल से ग्राह्य और सुन्दर स्वरूप प्रदान करता है ! कहा भी गया है, काव्य सत्यम शिवम और सुन्दरम की अजस्र त्रिवेणी है!</p>
<p>आपके दोहे, क्षमा करें, मुझे नहीं लगता प्रेरक काव्य का प्रतिदर्श कहे जा सकते हैं ! सादर </p>
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