"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-114 - Open Books Online2024-03-28T20:08:27Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/114?commentId=5170231%3AComment%3A997979&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=no'ओबीओ लाइव तरही मुशायरा'अंक-1…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9982272019-12-28T18:23:44.218ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>'ओबीओ लाइव तरही मुशायरा'अंक-114 को सफ़ल बनाने के लिए तमाम ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p>
<p>'ओबीओ लाइव तरही मुशायरा'अंक-114 को सफ़ल बनाने के लिए तमाम ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p> मुसाफ़िर जी ग़ज़ल तक आने के लिए…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9983112019-12-28T18:03:16.642ZMd. Anis armanhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mdanissheikh
<p>मुसाफ़िर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया </p>
<p>मुसाफ़िर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया </p> //मनचले बा २१२२ दल सा ११२ मस्…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9981602019-12-28T15:49:40.328ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>//मनचले बा २१२२ दल सा ११२ मस्त २१, अवारा १२२निकला २२//</p>
<p>'दल सा'22 है,इसे 112 कैसे ले सकते हैं? 'बादल सा'222 होगा ।</p>
<p></p>
<p><br></br>//'जानता है २१२२, वो मेरा हर ११२२ इक स्वप्न ११२२! कैसे २२//</p>
<p>इसमें 'इक' को 1 पर कैसे लेंगे,इसका वज़्न 2 होता है?</p>
<p></p>
<p><br></br>//मुश्किलें अपनों को भी गैर बना देती हैं।<br></br>मेरी किस्मत में तो गैरों का सहारा निकला//</p>
<p>इस शैर में जो आप भाव लेना चाहते हैं,वो बयान नहीं हो रहा है,ऊला में 'ग़ैर' और सानी में 'ग़ैरों' शब्द भी शैर को कमज़ोर कर रहे…</p>
<p>//मनचले बा २१२२ दल सा ११२ मस्त २१, अवारा १२२निकला २२//</p>
<p>'दल सा'22 है,इसे 112 कैसे ले सकते हैं? 'बादल सा'222 होगा ।</p>
<p></p>
<p><br/>//'जानता है २१२२, वो मेरा हर ११२२ इक स्वप्न ११२२! कैसे २२//</p>
<p>इसमें 'इक' को 1 पर कैसे लेंगे,इसका वज़्न 2 होता है?</p>
<p></p>
<p><br/>//मुश्किलें अपनों को भी गैर बना देती हैं।<br/>मेरी किस्मत में तो गैरों का सहारा निकला//</p>
<p>इस शैर में जो आप भाव लेना चाहते हैं,वो बयान नहीं हो रहा है,ऊला में 'ग़ैर' और सानी में 'ग़ैरों' शब्द भी शैर को कमज़ोर कर रहे हैं,इस भाव को यूँ कहना होगा:-</p>
<p>'मुश्किलें आईं तो अपना न कोई काम आया</p>
<p>मेरी क़िस्मत में तो ग़ैरों का सहारा निकला'</p>
<p></p>
<p>उम्मीद है आप संतुष्ट हुए होंगे?</p>
<p></p> आदरणीय मुनीश तन्हा जी एक अच्छ…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9983082019-12-28T11:42:52.485ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय मुनीश तन्हा जी एक अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए बधाइयां</p>
<p>आदरणीय मुनीश तन्हा जी एक अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए बधाइयां</p> आदरणीय दंडपानी नाहक जी अच्छी…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9982262019-12-28T11:42:25.953ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय दंडपानी नाहक जी अच्छी ग़ज़ल लिखने के लिए बधाइयां</p>
<p>आदरणीय दंडपानी नाहक जी अच्छी ग़ज़ल लिखने के लिए बधाइयां</p> आदरणीय समर सर ग़ज़ल पर आपकी प…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9980562019-12-28T11:38:12.904ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय समर सर ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है मार्गदर्शन के लिए बहुत-बहुत आभार।</p>
<p>कुछ चीजें मैं समझ नहीं पा रहा कृपया मार्गदर्शन करें।</p>
<p></p>
<p><span>मनचले बा २१२२ दल सा ११२ मस्त २१, अवारा १२२निकला २२</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।--- *समझ नहीं आया* </span></p>
<p></p>
<p><span>'जानता है २१२२, वो मेरा हर ११२२ इक स्वप्न ११२२! कैसे २२</span></p>
<p><span>ये मिसरा भी बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।--- *समझ नहीं…</span></p>
<p>आदरणीय समर सर ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है मार्गदर्शन के लिए बहुत-बहुत आभार।</p>
<p>कुछ चीजें मैं समझ नहीं पा रहा कृपया मार्गदर्शन करें।</p>
<p></p>
<p><span>मनचले बा २१२२ दल सा ११२ मस्त २१, अवारा १२२निकला २२</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।--- *समझ नहीं आया* </span></p>
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<p><span>'जानता है २१२२, वो मेरा हर ११२२ इक स्वप्न ११२२! कैसे २२</span></p>
<p><span>ये मिसरा भी बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।--- *समझ नहीं आया* </span></p>
<p></p>
<p><span>मुश्किलें अपनों को भी गैर बना देती हैं।<br/>मेरी किस्मत में तो गैरों का सहारा निकला' --- मुश्किल समय में अपने खास लोग मदद नहीं करते जबकि कुछ अनजान लोगों से हमेशा मदद मिलती है उसी संदर्भ में लिखने का प्रयास किया है।</span></p>
<p></p>
<p>बाकी आपके आशीर्वाद से गजल को और बेहतर लिखने का प्रयास करता रहूंगा।</p> बहुत बहुत आभार समर साहब। आपकी…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9980052019-12-28T10:28:43.243Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://www.openbooksonline.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>बहुत बहुत आभार समर साहब। आपकी हर सलाह इस ग़ज़ल के लिए भी और आगे भी बहुत काम आएगी। विस्तृत मार्गदर्शन के लिए पुनः शुक्रिया।</p>
<p>बहुत बहुत आभार समर साहब। आपकी हर सलाह इस ग़ज़ल के लिए भी और आगे भी बहुत काम आएगी। विस्तृत मार्गदर्शन के लिए पुनः शुक्रिया।</p> जनाब मुनीश तन्हा जी आदाब,ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9980032019-12-28T10:10:20.020ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मुनीश तन्हा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब मुनीश तन्हा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p> संशोधन के बाद ठीक है,बधाई स्व…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9981592019-12-28T10:07:11.055ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>संशोधन के बाद ठीक है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>संशोधन के बाद ठीक है,बधाई स्वीकार करें ।</p> जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-28:5170231:Comment:9980532019-12-28T10:03:08.531ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,मुशायरे में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।</p>
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<p>जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,मुशायरे में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।</p>
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