"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-10 में स्वीकृत रचनाएँ - Open Books Online2024-03-28T21:24:19Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/10-1?commentId=5170231%3AComment%3A741336&x=1&feed=yes&xn_auth=noआप का स्वागत है भाई रतन राठौड़…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-18:5170231:Comment:7413362016-02-18T09:12:16.528Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आप का स्वागत है भाई रतन राठौड़ जी, आशा करता हूँ कि मंच पर आपकी उपस्थिति से हम सब लाभान्वित होंगेI</p>
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<p>आप का स्वागत है भाई रतन राठौड़ जी, आशा करता हूँ कि मंच पर आपकी उपस्थिति से हम सब लाभान्वित होंगेI</p>
<p></p> आयोजन बहुत अच्छा लगा. रतन कुम…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-11:5170231:Comment:7391802016-02-11T17:16:40.004Zरतन राठौड़http://www.openbooksonline.com/profile/RatanKumarSingh
<p>आयोजन बहुत अच्छा लगा. रतन कुमार सिंह के नाम से पहली बार अपनी रचना पोस्ट की है / सतरंगी स्वप्न /<br/>पोस्ट की गई लघु कथाओं की सख्या देखकर बहुत अच्छा लगा /<br/>हार्दिक बधाई /<br/>रतन राठौड़ जयपुर /</p>
<p>आयोजन बहुत अच्छा लगा. रतन कुमार सिंह के नाम से पहली बार अपनी रचना पोस्ट की है / सतरंगी स्वप्न /<br/>पोस्ट की गई लघु कथाओं की सख्या देखकर बहुत अच्छा लगा /<br/>हार्दिक बधाई /<br/>रतन राठौड़ जयपुर /</p> हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सर योग…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-08:5170231:Comment:7386602016-02-08T06:21:35.233ZArchana Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/ArchanaTripathi
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सर योगराज प्रभाकर जी ।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सर योगराज प्रभाकर जी । हार्दिक आभार आ० ओमप्रकाश क्षत…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-08:5170231:Comment:7388162016-02-08T05:52:57.695Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>हार्दिक आभार आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जीI आशा है कि अगले आयोजन में हम सब आपकी उपस्थिति से अवश्य लाभान्वित होंगेI </p>
<p>हार्दिक आभार आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जीI आशा है कि अगले आयोजन में हम सब आपकी उपस्थिति से अवश्य लाभान्वित होंगेI </p> श्री रतन कुमार सिंह जी की रचन…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-08:5170231:Comment:7386552016-02-08T04:35:25.916Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>श्री रतन कुमार सिंह जी की रचना को क्रम संख्या 20 पर प्रस्थापित का भूल सुधार कर लिया गया है आ० टी आर सुकुल जीI</p>
<p>श्री रतन कुमार सिंह जी की रचना को क्रम संख्या 20 पर प्रस्थापित का भूल सुधार कर लिया गया है आ० टी आर सुकुल जीI</p> हांर्दिक आभार आ० नीता कसार जी…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-08:5170231:Comment:7386532016-02-08T04:33:11.027Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>हांर्दिक आभार आ० नीता कसार जीI </p>
<p>हांर्दिक आभार आ० नीता कसार जीI </p> यथा निवेदित तथा प्रस्थापित tag:www.openbooksonline.com,2016-02-08:5170231:Comment:7386512016-02-08T04:32:30.007Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित तथा प्रस्थापित </p>
<p>यथा निवेदित तथा प्रस्थापित </p> आयोजन की सफलता के लिये बहुत ब…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-07:5170231:Comment:7387262016-02-07T14:35:05.999ZNita Kasarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NitaKasar
आयोजन की सफलता के लिये बहुत बहुत बधाईयां आद०योगराज प्रभाकर जी ।इस बार आयोजन में आधी अधूरी ही पहुँच पाई हूँ।अब पढ़ती हूँ कथाओं ।संकलन हेतु दिल से आभार स्वीकृत करियेगा सादर ।
आयोजन की सफलता के लिये बहुत बहुत बधाईयां आद०योगराज प्रभाकर जी ।इस बार आयोजन में आधी अधूरी ही पहुँच पाई हूँ।अब पढ़ती हूँ कथाओं ।संकलन हेतु दिल से आभार स्वीकृत करियेगा सादर । आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,मेर…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-05:5170231:Comment:7384302016-02-05T18:33:39.501ZArchana Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/ArchanaTripathi
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,मेरी कथा "प्रकृति के रंग में" संशोधन किया हैं अगर सम्भव हो तो संकलन में कथा नंबर 40 के स्थान पर प्रतिस्थापित कर दीजिये।सादर<br />
संशोधित कथा<br />
"प्रकृति के रंग"===<br />
<br />
गंभीर बीमारी से पति की मृत्यु , के पश्चात मायके में रह रही रिया चिडचिडी हो, सदैव लड़ने को तत्पर रहती थी। सदैव संयमित रहने वाली भाभी भी संयम खो बैठी लेकिन स्वंय पर अंकुश रखते हुए कह उठी -<br />
<br />
" रिया, आपका मन घर के कामों में नहीं लगता तो मत करो , लेकिन घर के बाहर निकलो लोगो से मिलो-जुलो, हँसो बोलो "<br />
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" भाभी , मेरा मन…
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,मेरी कथा "प्रकृति के रंग में" संशोधन किया हैं अगर सम्भव हो तो संकलन में कथा नंबर 40 के स्थान पर प्रतिस्थापित कर दीजिये।सादर<br />
संशोधित कथा<br />
"प्रकृति के रंग"===<br />
<br />
गंभीर बीमारी से पति की मृत्यु , के पश्चात मायके में रह रही रिया चिडचिडी हो, सदैव लड़ने को तत्पर रहती थी। सदैव संयमित रहने वाली भाभी भी संयम खो बैठी लेकिन स्वंय पर अंकुश रखते हुए कह उठी -<br />
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" रिया, आपका मन घर के कामों में नहीं लगता तो मत करो , लेकिन घर के बाहर निकलो लोगो से मिलो-जुलो, हँसो बोलो "<br />
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" भाभी , मेरा मन नहीं करता "<br />
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" क्यों रिया ?क्या प्रकृति मात्र एक ही रंग और रिश्ते से सजी हैं ?<br />
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" मतलब ? आप कहना क्या चाहती है ? "<br />
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" जैसे पतझड़ के बदरंग मौसम भी बहारो में खूबसूरत और रंगीन हो जाते हैं। गर्मी की चिलचिलाती धुप बेशक तपिश देती हैं लेकिन सर्दियों में उसकी गुनगुनाहट कितने खुशगवार रंग बिखेर प्रकृति की तपिश सुहानी कर देती हैं । "<br />
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" हाँ , अब मैं भी तो पतझड़ का ही हिस्सा हूँ ? "<br />
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" इसलिए कह रही हूँ , सोचो मत, उतार फेकों यह हिमालय सी सफेदी "<br />
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" हिमालय सी सफेदी उतार दूँ?"अचानक उसकी पोरों में जमी हुई बर्फ की चुभन अब सिसकियों में बदल गयी । आयोजन की सफलता हेतु शुभ कामन…tag:www.openbooksonline.com,2016-02-03:5170231:Comment:7377822016-02-03T16:41:24.978ZDr T R Sukulhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul
<p>आयोजन की सफलता हेतु शुभ कामनाएं। महोदय ! सरल क्रमांक २० पर किस मित्र की कथा छूट गयी है? या ,क्या यह क्रम रिक्त रखा गया है ? सादर। </p>
<p>आयोजन की सफलता हेतु शुभ कामनाएं। महोदय ! सरल क्रमांक २० पर किस मित्र की कथा छूट गयी है? या ,क्या यह क्रम रिक्त रखा गया है ? सादर। </p>