All Discussions Tagged 'aaj' - Open Books Online2024-03-28T08:25:14Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topic/listForTag?tag=aaj&feed=yes&xn_auth=noसच्चाई आज की ;मेरी नज़रों मेंtag:www.openbooksonline.com,2012-10-24:5170231:Topic:2845672012-10-24T09:07:42.592Zshalini kaushikhttp://www.openbooksonline.com/profile/shalinikaushik
<p><font color="#660000" size="5"><a href="https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSZWgNgLIsSqnQhtmL87QQqZElBdvc2zrdsuYTs-W_m7sn14QLn" target="_blank"><font color="#660000" size="5"><img class="align-right" src="https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSZWgNgLIsSqnQhtmL87QQqZElBdvc2zrdsuYTs-W_m7sn14QLn&width=200" width="200"></img></font></a> <span>आज दशहरा है और आस पास के घरों में बाहर गए बेटे बहुओं की खिलखिलाहट सुनाई दे रही है आज ये आवाजें केवल किसी त्यौहार के अवसर पर ही सुनाई देती हैं और दिन सभी अपने अपने में व्यस्त रहते हैं </span><span>कहा जाता है कि ये आज के समय की मांग है .हम भी देख रहे हैं कि आदमी उन्नति के लिए…</span></font></p>
<p><font size="5" color="#660000"><a target="_blank" href="https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSZWgNgLIsSqnQhtmL87QQqZElBdvc2zrdsuYTs-W_m7sn14QLn"><font size="5" color="#660000"><img class="align-right" src="https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSZWgNgLIsSqnQhtmL87QQqZElBdvc2zrdsuYTs-W_m7sn14QLn&width=200" width="200"/></font></a><span>आज दशहरा है और आस पास के घरों में बाहर गए बेटे बहुओं की खिलखिलाहट सुनाई दे रही है आज ये आवाजें केवल किसी त्यौहार के अवसर पर ही सुनाई देती हैं और दिन सभी अपने अपने में व्यस्त रहते हैं </span><span>कहा जाता है कि ये आज के समय की मांग है .हम भी देख रहे हैं कि आदमी उन्नति के लिए देश विदेश मारा मारा फिर रहा है और परिवार के नाम पर अब मात्र औपचारिकता ही रह गयी है .किन्तु इसके पीछे एक सच भी है कि आज अपने बड़े आज के युवाओं को ''अपने जीवन में एक बाधा ''के तौर पर ही दिखाई देते हैं .वे स्वतंत्रता से जीना चाहते हैं और उनकी उपस्थिति उन्हें इसमें सबसे बड़ा रोड़ा दिखती है .</span><span>और इसका ही परिणाम है कि आज जो बच्चे अपने बड़ों से अलग रह रहे हैं उनके बच्चे भी कहीं और उनसे अलग ही रह रहे हैं कहा भी तो गया है कि ''जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए ''और ऐसे में वे भी वही झेल रहे हैं जो उन्होंने अपने बड़ों के साथ किया है और ऐसा नहीं है कि </span><span>संस्कार नाम की चीज जब उन्होंने अपने बच्चों में डाली ही नहीं है तो वे इसकी आशा कर भी नहीं सकते और इसलिए बुढ़ापा जिसमे अपने अपनों का साथ सभी को प्यारा होता है उसमे वे सभी एकांत की जिंदगी गुजरने को विवश हो रहे है .</span></font></p>
<p><span><font size="5" color="#660000">और रही संयुक्त परिवारों के टूटने की बात तो इसके लिए आज की स्थितियां ही नहीं उनमे व्याप्त विषमता भी जिम्मेदार कही जाएगी क्योंकि अधिकांशतया यही देखा गया कि संयुक्त परिवारों में घर का एक शख्स तो काम की चक्की में पिस्ता रहता था और अन्य सभी इसे उसका फ़र्ज़ कहकर या फिर ये कहकर कि ''अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम,दास मलूका कह गए सबके दाता राम ''.</font></span></p>
<p><font size="5" color="#660000"><span> </span><span>क्या मेरे विचारों में आपको कुछ गलत लग रहा है यदि हाँ तो दिल खोल कर बताएं क्या पता आपके अनुभव कुछ और कहते हों .</span></font></p>
<p><font size="5" color="#660000"><span> </span><span>शालिनी कौशिक [कौशल ]</span></font></p>